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संसद की गरिमा और देश में शान्ति व सौहाद्रता
देश में कुछ स्थानों पर सत्ता का प्रभाव ही नैतिक अनुशासन
शुन्य बनाकर शासन प्रशासन को लुंजपुंज करते हुवे सामाजिक संतुलन
व आपसी सौहाद्रता को नेस्तनाबूत कर चुका है | परस्पर आरोपों व
प्रत्यारोपों नें सारी मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है | अत: " दूध का
दूध और पानी का पानी करना जरुरी है |
मोदी सरकार की स्थापना पश्चात पंजीबद्ध हुए दंगे और दंगा क्षेत्रों
के शासक दलोंकी जानकारी अब सार्वजनिक होंना चाहिए, जिससे -
नागरिक भ्रमित न हो व देश में अशान्ति न फैले ।
इस प्रकार की जानकारी मिलनें से नागरिक खुद ही समझ जायेगे कि
कौन से राजनीतिक दल और उनकी सरकारे प्रामाणिकता के साथ
जनता की सेवा व प्रगति कर रही है ? और कौन से दल आरोपों व
प्रत्यारोपों के माध्यमसे जनता को भ्रमित करके देश में अशांति पैदा
करते हुवे सत्ता हथियानें में जुटे हुए है ?
याद रहे कि संसद, हंगामा करनें व अपना ही राग आलापनें का दालान
नहीं है, सांसदों को बोलनें के समान अवसर, पक्ष-विपक्ष नें शांतिपूर्वक
सुसभ्य भाषा में देश व जनहितों की सुरक्षा तथा प्रगति के विषयों पर
तर्क संगत सच्चे आकडो की प्रस्तुती के साथ एकमत से निर्णय हेतु
जनप्रतिनिधित्व करनें का स्थल है |
क्या देश का जनमानस सांसदों को उक्त व्यवस्थाओं से जोडनें के लिए
स्वयं आगे बढकर शान्ति व सौहाद्रता निर्मित करनें में सफल होगा ?
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